अलग-अलग ध्वनियां


सूरज काफी तेज चमक रहा है। कमरे में मकड़ी के जाले साफ किए हैं। पंखें नीचे बैठकर गर्मी को मालूम करना कठिन है। घड़ी की टिक-टिक साफ सुनाई दे रही है। कहीं कौआ बोल रहा है। चिड़ियां तो खैर आसपास चहकती ही रहती हैं। पास के घर से बाल्टी के खटकने की आवाज आ रही है। शायद कोई अधेड़ महिला कपड़े धो रही है। कौए का बोलना अभी थमा नहीं। अब कई कौए एक साथ कांव-कांव कर रहे हैं, मानो शर्त लगी हो।

इतना लिखने के बाद मैं ‘रिलैक्स फील’ कर रहा हूं। शायद रसोईघर का दरवाजा खुला। उसी के खुलने की आवाज मेरे कानों ने सुनी।

दो चीटियां फर्श पर दौड़ी जा रही है। लगता है उन्हें कहीं की जल्दी है। हमारी गाय के लिए आये चोकर में से पता नहीं ये श्रमी जीव क्या खोज करते हैं। अमरुद के पेड़ पर गिलहरी फलों को कुतर ज्यादा रही है, खा कम रही है। अभी केवल दस मिनट का समय बीता है।

गोलू के चिल्लाने की आवाज आयी। इस दुबले-पतले लड़के की उसके शरीर के मुकाबले आवाज कई गुना तेज है। कुछ बच्चे दौड़कर हमारे घर के आगे गए हैं।

किसी के यहां भोजन बन रहा है। प्रेशर कूकर की सीटी की ध्वनि साफ सुनी जा सकती है। बस के होर्न की सुनाई मुझे साफ यहां बैठे दे गयी। स्कूल के बच्चे उतर गये हैं। आज जल्दी छुट्टी हो गयी। सड़कों पर भीड़ बढ़ती जा रही है, मोहल्लों में इमारतें और लोग।

मकड़ियां दीवार पर शांत चिपकी हैं। मैं उपाय खोज रहा हूं जिससे इनसे निजात पाई जा सके।

--हरमिन्दर सिंह चाहल.

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