कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
ब्लॉग वार्ता : कहीं आप बूढ़े तो नहीं हो रहे
रवीश कुमार
सीखना क्यों चाहिए? हरमिन्दर के इस सवाल पर बूढ़ी काकी का जवाब सिम्पल था- ‘ताकि हम रूके न रह सकें’। काकी बोलती गई। ‘मैं इतना कहती हूं कि हम चलते रहें। ऐसा होगा तो जीवन आसान होगा। हमारा जीवन महत्वपूर्ण है’। नौजवान ब्लॉगर हरमिन्दर सिंह जब एक बूढ़ी काकी से बात कर रहे हैं तो बुढ़ापे की समझ हमारी खुलने लगती है।
हरमिन्दर का ब्लॉग दावा करता है कि यह वृद्धों का पहला ब्लॉग है। बुढ़ापे को करीब से जानने की कोशिश है यह ब्लॉग।
हरमिन्दर और काकी का संवाद जारी है। काकी कहती हैं- आग को छूओगे नहीं तो पता कैसे चलेगा। अभ्यास जरूरी है। बिना जाने जीवन जिया नहीं जा सकता। यह सच है और जीवन का सच मृत्यु तक ही है, बाद का किसे पता है कि क्या है। तमाम तरह की राष्ट्रीय बहसों से बूढ़े लोगों को भगा दिया गया है। सब युवाओं की बातें कर रहे हैं। मनमोहन सिंह ने जब पहले दिन अपने मंत्रियों के साथ शपथ ली, तो सबकी उम्र जोड़ कर पूछा जाने लगा कि इसमें युवा कहां हैं।
इस मंत्रिमंडल की औसत आयु तो 67 साल है। उम्र को इस तरह उछाला गया जैसे ये बूढ़े लोग मुल्क का बेड़ा गर्क कर देंगे। युवा होना ही सब होना है। चालीस और पचास की उम्र के लोग पूरी कोशिश में लगे हैं कि बुढ़ापा टल जाए। सिर्फ युवाओं से उम्मीद है। बूढ़े लोगों से कुछ नहीं। हरमिन्दर को ठीक ही लगा होगा कि जब कोई बुजुर्गों से बात नहीं कर रहा है तो क्यों न वे पहल करें। हरमिन्दर सवाल करते हैं कि जीवन का सार होता है बुढ़ापा।
फिर क्यों हम बुढ़ापे से बचने की बात करते हैं? जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमारा भी बुढ़ापा मुस्कुराता हुआ इंतजार कर रहा है।इन सब सवालों के बीच हरमिन्दर का अपनी बूढ़ी काकी से संवाद नहीं टूटता है। लिखते हैं कि काकी का जीवन नीरस था। फिर भी अपनों को देख कर उसकी आंखें छलक जाती हैं। पूछने पर कहती है- मेरे अपने यदि मेरे साथ होते हैं तो उससे बढ़कर खुशी कोई और नहीं होती। औलाद का अपनापन हर पालनहार की ख्वाहिश होती है। चाहत का दामन न टूटे इसलिए वे चाहते हैं कि सब उसकी आंखों के सामने रहें।
हरमिन्दर-काकी संवाद में इस बात को समझने की बहुत गुंजाइश है कि हम अपने बुजुर्गों से कितना जान सकते हैं। वृद्धाश्रम अब सिर्फ किसी सेठ की कृपा से नहीं चलता, बल्कि अब तो लोग अपने पैसे से वृद्धग्राम के मॉडल पर दिल्ली मुंबई में बन रही हाउसिंग सोसायटियों में एक कमरे का मकान खरीदते हैं। परिवार से दूर रहने खुद ही चले जाते हैं। घर से निकालने की तमाम बहसों के बीच अब बाजार भी इसका फायदा उठा रहा है।
हरमिन्दर वृद्धों के साथ रिश्ता बनाने की बात करते हैं। कहते हैं कि फिल्मों में भी उपेक्षित हैं हमारे बुजुर्ग।
गानों में बुढ़ापे का जिक्र किसी उपहास की तरह आता है। क्या करूं राम, मुङो बुड्ढा मिल गया। उत्तर प्रदेश के गजरौला के रहने वाले ब्लॉगर हरमिन्दर हर वक्त बूढ़े लोगों में खोये रहते हैं।
मौत की शक्ल ढूंढ रहा हूं, मिलती ही नहीं, क्यों गुम है, वह खड़ी चौखट पर, यह समझता कोई नहीं है। हरमिन्दर की कवितायें भी वृद्धों की संवेदनशीलता के संसार से बन कर आती हैं। पल-पल पलकों के आंगन से, नहीं बहती मद्धिम धारा है, इस तट पर मैं खड़ा हूं, खत्म जहां किनारा है। हरमिन्दर धर्मशास्त्रों में भी खोजते हैं कि हमारे बुजुर्गों के बारे में क्या कहा गया है। जो नित्यप्रति वृद्धजनों तथा अभिवादन योग्य भद्रजनों की सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चार चीजें बढ़ती हैं।
धर्मशास्त्रों को कहना चाहिए था कि अच्छी जवानी के लिए इन्हीं चार चीजों की जरूरत होती है। यह ब्लॉग वृद्धों की सेवा करने वाला कोई एनजीओ या धर्माथ सेवार्थ संस्थान नहीं है। यह समझने की कोशिश करने का वाकई प्रयास लगता है। हरमिन्दर ढलती उम्र पर अच्छी कवितायें लिखते हैं। एक कविता की आखिरी पंक्ति है- अगर सरकती नहीं टांगे, तो इसमें बुराई क्या है, यही बुढ़ापा है, यही सच्चाई है।
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लेखक का ब्लॉग है naisadak. blogspot. com