अब खामोश हूं मैं


मैंने ये दुनिया आखिरकार छोड़ दी। पीछे छूट गये जाने कितने अपने। नम आंखें, बिलखते लोग। अब अकेला चल पड़ा हूं एक राह जहां चलना है और चलना है। जिंदगी कितनी खूबसूरत रही, यह मैं जान चुका। यादें भी छूट गयीं अब। बचा क्या? .....कुछ भी तो नहीं। .....मैं भी नहीं। खत्म हुआ मैं, मुक्त हुआ मैं। अब खामोश हूं मैं।
 
  अग्नि की लौ उठी, पंच तत्वों का मिलन निश्चित है। यही अंत है। मृत्यु सुखद या दुखद, लेकिन एक बार, यह सत्य है। चल पड़ा मैं वापस न लौटकर आने के लिए। उम्र बीती या मैं, पता नहीं। सुना कि जीवन बीत गया इसलिए साथ छूट गया।

  आंसू, भीगी पलकों पर खारी नमीं ओस की तरह चिपकी है। कुछ भी तो नहीं रहा। राख ही तह भी नहीं रहेगी। सहेजा जायेगा कुछ। जीवन बड़ी जल्दी बीत गया। ऐसा कौन सोचता है, शायद कोई नहीं।

चुपचाप था मैं अपने अंतिम वक्त। शांत और मृत शरीर बाकि था। जिसे देश छोड़ना था, वह तो उड़ चला अपने देश। खोया क्या, पाया क्या मैंने जीकर। उम्र बीती, बुढ़ापा पाया, जर्जरता ओढ़ी और विदाई ली। याद रहूंगा, पर कितने दिन।

जो चाहा किया, करता रहा। वक्त ने आखिरकार थाम दिया। रुक गया मैं, खामोश हूं अब। न बोलूंगा, न चलूंगा उस देश जो मेरा कभी था ही नहीं अपना। पैदा हुआ मैं मृत्यु पाने को। जन्म लिया, खेला-कूदा, सुख-दुख का भागी रहा, पर कितने दिन। अरे, कल ही की तो बात है। आज कुछ शेष नहीं रहा, मैं भी नहीं।

यही जीवन है। उठा-बैठा-चला और खामोश।

दिन गुजरे, मैं भी,
बीत गया सब,
जा रहा हूं,
सदा के लिए अब,
न रहेंगी यादें,
न मेरी बातें।


-Harminder Singh