कहानी भी बूढ़ी हो चली

nani, grandmother, storyनानी अब कहानी नहीं सुनाती। सुनने वाले बच्चे हैं, नानी भी होती है, पर कहानी नहीं होती। नानी बूढ़ी है, दादी बूढ़ी है। लगता है कहानी भी बूढ़ी हो चली है। बच्चे कहते हैं,‘यह कोई कहानी है?’ नानी की गोद में मुन्ना-मुन्नी नहीं बैठते। दादी भी शायद इसलिए ही चुप है। उसकी गोद खाली-खाली है।

वह दुलार कहां गया? वह प्यार कहां गया? और वह कहानी....। हां, वह कहानी जिसे नानी सुनाती थी हर रोज, हर रात ठीक सोने से पहले। वृद्ध हाथों का नर्म या सख्त अहसास और थपकी। सो जाते थे बच्चे वहीं गोद में। फिर वह उन्हें निहारती। कितना भोला चेहरा, कितनी मासूमियत भरी होती तब। हर दृश्य उसके सामने छोटा लगने लगता। प्रेम और स्पर्श का अद्भुत संगम और ममतामयी छांव की छींटें। सचमुच पलकें भिगो देने वाला दृश्य जिसे कैद किस तरह किया जाये, यह सोचना मुश्किल है।

नाती-पोते चहक रहे हैं। मस्ती है, कूद-फांद है। सब कुछ तो उनके पास। पर्दा छोटा हो या बड़ा, मनोरंजन ढेर सारा है। खेल मैदानी भी हैं, खेल तूफानी भी हैं। रफ्तार को बटनों से घटा-बढ़ा रहे हैं और वह भी एक जगह बैठे-बैठे। पूरी दुनिया जो असली न सही, लेकिन उनके लिए समय बिताने का अच्छा साधन। अब नानी की कहानी की फुर्सत किसे?

राजा पुराना हो गया। रानी कब की स्वर्गवासी हो पता नहीं कहां है। राजकुमारों का अतापता नहीं। जादूगर क्या करतब दिखायेगा? शेर-बिल्ली-चूहे-खरगोश जंगल से गायब हैं। यह सोचने भर से ही अंदाजा लग जाता है कि कहानी में होगा क्या। शायद कुछ नहीं। खाली डिब्बे के बजने से भी खराब आवाज कर रही है नानी की कहानी।

खामोशी हैं आखों में, लेकिन एक विचार है। नानी की कहानी समझदारी सिखाती है। जीवन की बारीकियां भला कहां मिलती हैं। प्रेम, स्पर्श और गोद में खजाना है। जमाना बढ़ चला है, नानी वहीं है, और बुढ़ापा भी।

-Harminder Singh

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