एक कैदी की डायरी -42

jail diary, kaidi ki diary, vradhgram,मेरे विचार में लक्ष्मी और लाजो दोनों एक दूसरे को काफी समझते थे। उनकी एक कहानी थी जिसके पात्र वे दोनों थीं और धीरे-धीरे मैं तीसरा पात्र बनकर उसका हिस्सा बनता जा रहा था। मुझे पता नहीं था कि उस कहानी का अंजाम क्या होगा, लेकिन वह चले जा रही थी।

एक त्रिकोण सा बनता जा रहा था जिसके बिन्दु गहरे होते जा रहे थे। कहीं लगता कि मन को किसने यूं बहा दिया और वह क्यों खिंचा जा रहा है? कहीं मन ठहर कर बहुत कुछ कहने लगता कि उसे बड़ी दुविधा हो रही है।

बचपन नई तरह की सोच में डूबता जा रहा था। माहौल का मिजाज बदलता जा रहा था। फूलों की खुशबू प्यारी लगने लगी थी। अपने साथियों को देखने की नजर में फर्क आ रहा था। एक तरह से आनंद का अनुभव हो रहा था जिससे मैं खुद को हल्का महसूस कर रहा था। इतना हल्का कि हवा में उड़ने का मन करता था। आसमान नीला देखकर मन गाने लगा था। रात का खुला आकाश और तारों की जगमगाहट सुन्दर लगती।

मैं बदल रहा था। मेरी दुनिया बदल रही थी। मेरे साथी कहते कि मैं अब खुशमिजाज रहने लगा हूं। खुलकर हंसने की पहले कोशिश करता था, अब हंसी रोके नहीं रुकती थी। लक्ष्मी को रोज मिलने की तमन्ना होती। जिस दिन वह स्कूल नहीं आती, मैं उदास रहता और लाजो से उसके बारे में पूछता। लाजो से ज्यादा फिक्र अब मुझे लक्ष्मी की रहती। वह धीरे-धीरे मुझसे बात करती। हम कभी-कभी बहुत देर तक अकेले बातें करते रहते। पास बैठी लाजो सुनती और मुस्कराती रहती। बीच-बीच में कई बार बोल पड़ती तो मैं उसे चुप कर देता। वह मुस्कराकर चुप हो जाती। उसे मेरा कहा बुरा नहीं लगता था। वह मुझे लक्ष्मी के पहले से जो जानती थी।

मेरे साथ अक्सर हुआ है जब खुशियां नजदीक आने की कोशिश करती हैं तो उन्हें मुझसे दूर करने की जुगत कहीं चल रही होती है। मैं कई बार जीतने की कोशिश करता हूं, मगर एन वक्त हार जाता हूं। तब मुझे तकलीफ होती है जिससे उबरने में समय लगता है। जब ख्वाब टूट कर बिखरते हैं तो उन्हें जोड़ना मुश्किल होता है। बिखरी हुई चीजें इतनी आसानी से इक्ट्ठा भी नहीं होतीं। ख्वाब तो ख्वाब होते हैं।

लक्ष्मी के लिए मेरे सपनों की कलियां मुस्कराने लगी थीं। मैंने उसके बारे में खूब सोचना शुरु कर दिया था। यह एक अदृश्य भाव था जो धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। मैं इतना छोटा भी नहीं था जो समझ न सकूं कि मैं मोह कर बैठा था। मोह की डाली मोहक लग रही थी जिसपर बिना वसंत भी चिड़ियों की चहल-पहल थी।

एक दिन लक्ष्मी से मैंने पूछा कि वह क्या पसंद करती है। उसने आंखों को छोटा किया, तिरछी गरदन कर खुले आसमान की ओर देखा और बोली,‘जो तुम्हें पसंद है।’ फिर उसने मेरी आंखों में झांकने की कोशिश की, पर नजरें झुका लीं। मैं एकटक उसके चेहरे को देखता रहा और वह नीचे मुंह किए काफी देर बैठी रही। कुछ समय बाद उसने लंगी सांस ली। उसने मेरी ओर देखा। हल्की मुस्कान थी उसके चेहरे पर।

लक्ष्मी के वे शब्द मुझे अजीब बना गए। रात भर लक्ष्मी का चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता रहा। आंख कब लग गयी मालूम नहीं। मुझे एहसास हो चुका था कि किसी की बातें कितनी जादुई होती हैं कि हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं। हम उनमें खो जाते हैं और खुद को बहुत हद तक भूला हुआ पाते हैं। किसी की एक मुस्कान इतना प्रभाव डाल देती है कि जीवन की कीमत समझ आने लगती है और जिंदगी का बिछड़ा रस फिर से मिलता हुआ महसूस होता है।

जारी है...

-Harminder Singh




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