उंगलियां बोलती हैं

उंगलियां बोलती हैं

किसी ने फेसबुक पर मुझसे चैट के दौरान कहा था कि यहां उंगलियां बोलती हैं। उसके बाद मैंने जोड़ा -‘हो रही हैं बातें ढेरों, लेकिन एक चुप्पी के साथ। यह अजीब है, बहुत हैरानी भरा कि भावनायें महसूस की गयीं उस कोने में भी क्योंकि उंगलियां बोलती हैं।’

उसने आगे लिखा -‘तकनीकी करिश्मा है यह।’

मैंने कहा -‘तकनीक हमने बनाई है। फायदा हम उठा रहे हैं। जितना हो सकता है खर्च कर रहे हैं समय। कई बार मतलब के और कई बार बेमतलब। इंसान हैं तो गलतियां करने के लिए पैदा हुए हैं।’

कुछ समय बाद मैं टहल रहा था। हवा की ताजगी थी। सोचने लगा कि कीबोर्ड पर उंगलियां हरकत करती हैं तो नया होता है। अक्षर बनते हैं। भावनायें बिखर जाती हैं। ऐसा लगता है जैसे हमने सबकुछ उडेल दिया। यह ताकत उंगलियों की है। विश्वास में होते हैं हम और दिमाग की कसरत हो रही होती है।

सच है यह कि चीजें उठती और गिरती हैं। फर्क आता है, असर होता है। महसूस भी किया जाता है। स्पर्श करने के साथ चीजें बदलती हैं। दबाव की परिभाषा का जिक्र करने की आवश्यकता नहीं। उंगलियां अपने आप हरकत में रहती हैं। उन्हें चलाते हम हैं। जगाते हम हैं। बिना बोले भी वे बोलती हैं। यकीनन उंगलियां बोलती हैं।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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