गांव


दूर है कहीं मेरा गांव,
कितने साल हो गए बिना गए,
यकीन नहीं होता खुद पर,
यह मैं हूं,
कहीं ख्वाब तो नहीं,
हां, नहीं गया मैं अपने गांव,
नहीं छू सका नंगे पैरों से गीली, ठंडी ओस को,
नहीं चला उस गीली, नरम रेत पर भी,
नहीं महसूस किया प्रकृति का स्पर्श,
खेतों की हरियाली को देखने को तरस गया,
पगडंडियों पर आड़ा-तिरछा चलने की ख्वाहिश फिर जगी है,
पेड़ों की ठंडक के बीच मिट्टी की महक भूला नहीं,
जीना चाहता हूं फिर वही पल,
जीना चाहता हूं बचपन को,
जाना चाहता हूं अपने गांव,
हां, जरुर जाऊंगा गांव,
यादों को फिर संजोना है,
उन्हें महसूस करना है।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.
(एक दशक पूर्व लिखी कविता)


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