अंगूर की बेल

एक दशक पहले हमने उन बेलों को अलविदा कह दिया। उनके स्थान पर काले अंगूर नहीं बल्कि हरे अंगूर की बेल बो दी। उनमें बीज नहीं होते..

अंगूर की बेल पर आजकल अंगूरों की संख्या कम हो गयी। हमनें बेल की समय पर कटाई-छंटाई नहीं की। किसी ने बताया था कि अंगूर की बेल को काट-छांट की सख्त आवश्यकता है। इससे फल अच्छे और अधिक आते हैं। साथ ही बेल की सुन्दरता बनी रहती है। 

हमने सबसे पहले काले अंगूर की दो बेलें उगायी थीं जिनपर बेहिसाब फल आता था। उनमें बीज जरूर होते थे लेकिन पकने के बाद शहद हो जाते। मोहल्ले के बच्चे जमकर अंगूरों का लुत्फ उठाते। वो बात अलग रही कि हम उनकी मेहमान नवाजी के कारण खुद अंगूरों से वंचित रह जाते। गरमी बढ़ते ही फल तेजी से पकते। 

सीजन में हमारे हिस्से एक या दो गुच्छे आते। दूसरी बेल टिन शेड पर फैली हुई थी इसलिये वहां किसी का आनाजाना नहीं होता था। हम शाम के समय या सुबह-सुबह उसके फल तोड़ लेते। एक दशक पहले हमने उन बेलों को अलविदा कह दिया। उनके स्थान पर काले अंगूर नहीं बल्कि हरे अंगूर की बेल बो दी। उनमें बीज नहीं होते। पकने के बाद उनका स्वाद शहद तो नहीं होता लेकिन स्वादिष्ट जरूर होते हैं। एक कमी यह है कि बेल की देखभाल करनी पड़ती है जिसके लिये हम हमेशा समय की तलाश में रहते हैं जो मिलना मुश्किल है।

हरमिन्दर सिंह


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