मैंने इसलिए नहीं मनाया क्रिसमस

एक दिन पहले ही मालूम था कि अगले दिन क्रिसमस-डे होगा। केक काटा नहीं गया। कारण ये रहे :
1) हम इसाई मित्रों के साथ नहीं रहते।
2) मेरे पड़ोसी मरियम को नहीं जानते।
3) मैं किसी चर्च में काम नहीं करता।
4) शहर के पादरी की शक्ल मुझे याद नहीं।
5) कुछ लोग कम धार्मिक नहीं हैं।

पांच ‘नहीं’ हुए तो क्रिसमस का त्योहार फीका गया।

किसी ने सुबह मुझे चिढ़ाया, यह कहा -
‘‘इस बार क्या इरादा है।’’

मैं चुप क्यों रहता, बोला –
‘‘मेरा इरादा नेक है, आप क्यों स्वयं को खतरों का खिलाड़ी समझते हैं।’’

उसने आंखों को घुमाना चाहा, मगर ऐसा हो न सका। वह सोचकर ये बोला-
‘‘पिछली बार केक लेकर तुम भाग निकले थे।’’

मुझमें उत्सुकता जगी जानने की कि आखिर   वह शख्स कहना क्या चाह रहा है।

मैंने पूछा -
‘‘ऐसा तुम्हें क्यों लगा?’’

वह आंखों को मटकाने की कोशिश में था कि यकायक उसने सोचा कि कहानी बेकार हो रही है। वह फिर बोला-
‘‘केक का वितरण उचित हुआ था ना।’’

मैं समझ गया। दिमाग को दौड़ाया। कुछ-कुछ स्मरण हुआ।

तब मैंने केक को मोहल्ले के बच्चों में बांट दिया था। इस बार ऐसा हुआ नहीं।

मैंने उससे प्रश्न किया -‘‘क्या केक बांटना गुनाह है?’’

वह सकपकाया, थोड़ा हैरान था। उसे ऐसी उम्मीद न थी। थोड़ा रुककर उसने कहा -
‘‘तुमने स्वयं खाया होगा।’’

मैंने सोचा-‘‘केक न हो गया, #%**# हो गया।’’

बड़ा अजीब इंसान था। खुद फ्लाप हो, लेकिन केक को हिट कराने की कसम लेकर तिलक लगाकर घर से निकला होगा।

-Harminder Singh
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