मायने बदल रही जिंदगी

बूढ़ी काकी कहती है-‘खुद से पूछ रही हूं जाने कितने सवाल। सच में जिंदगी के मायने बदल रहे हैं। उड़ती और गोते लगाती जिंदगी, बस यूं ही चलती जा रही है। एक मुस्कान जो महकते फूलों की तरह सजी है किसी कनेर के पेड़ पर। हरे पत्तों की परछाईयों की ओट से भी चहक रही है जिंदगी। लेकिन उम्र के साथ थमती भी नजर आ रही है जिंदगी।’

  मैं काकी की पंक्तियों को समेट कर रख रहा हूं। उसकी उम्र धीरे-धीरे बीत रही है।

  मैंने काकी से कहा-‘जिंदगी के मायने बदल रहे हैं, लेकिन वक्त भी तो बदल रहा है।’

  इसपर काकी बोली-‘वक्त अपने रुख पर कायम है। वह कहां रुकने वाला है। न वह ठहरता है, न ठहरेगा। जिंदगी की रफ्तार कम भी तो नहीं होती। ऐसा लगता है जैसे सब कुछ घोड़े पर सवार होकर हो रहा है। इतनी चहलकदमी सूखी लटाओं को भी सोचने पर विवश कर दे। मैं खामोश हूं। देख रही हूं अपने आसपास होते हुए बदलाव को।’

  ‘कल्पनायें मोड़ कर रखी थीं मैंने। सिलवटों के किनारों से लगता है सब बह गया। रुकी हुई सांझ सा भी लगता है वक्त हो गया। ऐसा भी हुआ है कि एक अजीब अस्तव्यस्तता बिना रुकावट के मुझमें समा गयी। यही बुढ़ापे की देन है।’

’लड़खड़ाती और डगमगाती चीजें अक्सर स्वयं में सिमटकर रह जाती हैं। बिखराव एक अनहोनी की तरह होता जरुर है, लेकिन अनगिनत भावों के टकराने की गुंजाइश रह जाती है। यह भावों की पहल नहीं, अपितु एक विश्वास की सीढ़ी से गोते लगाते हुए असहाय इंसान के साथ होता है।’

  मैंने कहा-‘सिमट रहे वक्त को सहेज कर तो रखा जा नहीं सकता, लेकिन जिंदगी के बहाव को बदलने की कोशिश जरुर की जा सकती है।’

  बूढ़ी काकी ने लंबी सांस ली और बोली-‘हां, जिंदगी की ख्वाहिश होती है वह भरपूर जिये। उम्र बीत जाये तब भी उसकी ताजगी बनी रहे। ऐसा होता नहीं और न ही भविष्य ऐसा कहता है। कोशिश करता है हर कोई ताकि बदलाव लाया जा सके, मगर चीजें जब पुरानी होती जाती हैं, उनकी मरम्मत की गुंजाइश भी उसी तरह गुजरे जमाने की बात होती चली जाती है। सोचा जा सकता है, किया नहीं जा सकता। यही तो होता है इस शरीर के साथ जिसमें जिंदगी समाई है और चला भी वही रही है।’

  कितना कुछ बताती है काकी। जीवन की बारीकियां अपने में अहम हैं। उलझी हुई चीजें जिन्हें जोड़ना मुश्किल है। सुलझी हुई बातें जिन्हें समझना भी मुश्किल, लेकिन उनका एहसास ही इतना कुछ कह जाता है जो तमाम जिंदगी हम संजोकर रखते हैं। 
-harminder singh