कभी-कभी पुर्जे थक जाते हैं

netar singh

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रिटायर्ड नेत्र सिंह अपने बुढ़ापे से खुश हैं। सुबह टहलने जाते हैं और दिनभर लोगों से मिलते रहते हैं। दिन कब गुजर जाता है पता नहीं चलता। उन्हें चिंता बस इस बात की है कि "शरीर धीरे-धीरे पुराना हो रहा है."


नेत्र सिंह के चेहरे पर झुर्रियां उतनी संख्या में नहीं। उम्र साठ से ज्यादा की है। खुशमिजाज हैं और पढ़ने के शौकीन भी। लेकिन लिखने से जरा बचने की कोशिश में रहते हैं। इस मामले में वे डा. रमाशंकर ‘अरुण’ की तरह हैं जो पेशे से चिकित्सक हैं, लेकिन मुझसे कह चुके कि पूछ लिजिए, मगर लिखना जरा मुश्किल काम है। पिछले दो साल से मैं उनके बचपन से लेकर इस उम्र तक की अहम बातों को लिखने की कोशिश में हूं। कभी मैं शहर नहीं होता, कभी वे नहीं मिल पाते।

नेत्र सिंह किताबों को पढ़ने का शौक आज से नहीं रखते। बताते हैं,‘जब मैं स्कूल जाया करता था, तब स्कूल की किताबों से जितना लगाव था, उतना ही दूसरी किताबों से भी था जिनमें कहानियां और लोगों की जीवनियां होती थीं। मैं उन्हें बड़े ही चाव से पढ़ता।’

वे आगे कहते हैं,‘किताबों से मैंने बहुत कुछ सीखा। धार्मिक किताबों को आजकल मैं पढ़ रहा हूं।’

इतना कहकर वे थोड़े मुस्कराते हैं। फिर कहते हैं,‘बूढ़ा जो हो गया हूं, शायद इसी कारण धार्मिक भी पहले से अधिक हो गया हूं। भगवान के पास जाने से पहले आस्था और धर्म में खुद को शामिल कर रहा हूं। पहले से कहीं ज्यादा धार्मिकता आ गयी है मुझमें।’

उस दिन हमारे अमरुद के पेड़ पर लगे फलों को देखकर वे बोले,‘इस बार फल काफी आया है।’ इतना कहकर उन्होंने एक फल तोड़ कर कहा,‘यह पक कर कितना सुन्दर लग रहा है। खाने में जायका अब दोगुना हो जायेगा। लेकिन मैं केवल धीमे-धीमे ही खा सकता हूं।’

नेत्र सिंह के दांत लगभग गायब हो चुके हैं। वे पहले की तरह अब चीजों को आसानी से खा नहीं सकते।

कहते हैं,‘मेरे चेहरे पर सिलवटें शायद कम हैं, और ज्यादा गहरी नहीं। इस वजह से मुंह का अंदाजा नहीं लग पाता कि इसमें दांत हैं या नहीं।’

फिर उन्होंने कहा,‘उम्र बीत रही है, धीरे-धीरे ही सही। स्वाद लगभग एक-जैसे लगते हैं। मगर मुझे देखो, मैं फिर भी इसी तरह चुस्त रहने की कोशिश करता हूं।

यह सच है कि नेत्र सिंह इतने उम्रदराज़ होकर भी बुढ़ापे की थकान को महसूस नहीं करते।

वे कहते हैं,‘जीवन बिना टेंशन के है। हां, शरीर में पुरानापन है। चूंकि मशीनरी की उम्र काफी हो गयी इसलिए कभी-कभी पुर्जे थक जाते हैं। यही उम्र का हिसाब है।’

-Harminder Singh