जीवन की सीख

old aged woman
बूढ़ी काकी ने बताया कि बचपन में वह काफी चंचल थी। उसके परिवार वाले प्राय: कहते,‘इतनी बड़ी हो गयी, अभी तक बचपना भरा है।’ काकी इन बातों पर ध्यान नहीं देती थी। कालेज में उसकी काफी सहेलियां थीं।

काकी ठंडी सांस भरते हुए कहती है,‘वे भी क्या दिन थे। स्वच्छंदता, खुलापन हवाओं में छिटकता था। ऐसा लगता था मानो आकाश में उड़ान भरने ही वाले हैं। कभी-कभी हम उड़ते भी थे, बिना पंखों के। तारों को तोड़ने का जि्क्र आता, तो मैं सबसे पहले बोल उठती। मामूली बात पर खिलखिला उठते हैं हम। कालेज में हमें पागल लड़कियों की फौज कहा जाता। मनमौजी भी थे हम -जो मन में आता करते।’

मैंने काकी से पूछा,‘क्या उस आजादी का मतलब था?’

काकी सहजता से बोली,‘क्यों नहीं? वह अवस्था ही ऐसी होती है। तब जीवन के सुन्दर रंगों में इंसान खुद को रंगा पाता है। आजाद ख्याल होते हैं, पैर रोके नहीं रुकते। जस्बा होता है, जोश भी यानि ऊर्जा से ओतप्रोत इंसान। अच्छे-बुरे का ज्ञान उतना नहीं होता। वह दौर शारीरिक और मानसिक विकास का जो होता है। आजादी चाहिए क्योंकि वह आवश्यक है, लेकिन आजादी तब किसी मतलब की नहीं रह जाती जब उसका फायदा गलत उठाया जाए।’

‘मेरी दो सहेलियां हद से ज्यादा बोलती थीं। मैं नहीं बल्कि हमारे कालेज के सभी उन्हें ‘बातूनी कुड़ियां’ कहकर पुकारते। उनके परिवारों की स्थितियां ठीक नहीं थीं, फिर भी वे अपने जीवन को खुलकर जी रही थीं। जीवन को बोझ न समझ उन्होंने जीवन की सच्चाई से जूझना सीख लिया था। मैं काफी बाद में सीख पायी।’

‘कुछ लोग जीवन को अपनी तरह जीते हैं। कुछ ओरों को देखकर। जो लोग जीवन खुलकर जीते हैं, जीवन की लड़ाई में वे कभी हारते नहीं, सिवाय अंतिम लड़ाई के।
हम कितने भी पारखी क्यों न हों, जीवन की अगली चाल समझ नहीं पाते। मैंने उन दोनों से कई मायनों में जीना सीखा। मैंने खुद को बदला। इससे मैं अपने आप में नये तरह के सुख का संचार कर पायी। पढ़ने की ललक ने मुझे जितना ज्ञान, उससे कहीं अधिक मेरी मां ने मुझे सिखाया। मां वास्तव में हर किसी की जिंदगी में अहमियत रखती है।’

काकी ने थोड़ा पानी पिया। गिलास अब आधा भरा था। काकी ने गिलास की तरफ इशारा किया, बोली,‘इसे देख रहे हो। पानी आधा भरा है, पूरा नहीं। हमारा जीवन इस गिलास की तरह है जिसमें खालीपन है। दूर से देखने पर वह अधूरा नहीं लगता। यदि गिलास पूरा भरा हो तो पानी के छलकने का भय बराबर बना रहता है।’

-Harminder Singh