अकेलापन नहीं अपनेपन की जरुरत

मैंने कई बूढ़ों को देखा है कि वे अकेले में रहते हैं। लेकिन वे अकेला नहीं रहना चाहते क्योंकि बुढ़ापे में अपनों के पास वक्त गुजारना अच्छा लगता है....

अकेले में समय बिताना मुझे अच्छा लगता है। ऐसा नहीं है कि मैं इधर-उधर अपना दिमाग दौड़ाता हूं। मैं अकेला रहकर अधिक व्यस्त हो जाता हूं। खुद को समझने-जानने का इससे बेहतर विकल्प मैं नहीं समझता कोई दूसरा है। कुछ समय हमें स्वयं को भी देना चाहिए। अगर हमारे पास बिल्कुल भी वक्त नहीं- यहां तक कि सोने की फुर्सत भी नहीं, तब भी कोशिश कीजिए। वक्त निकल ही आता है, सिर्फ उसे नियंत्रित करने की जरुरत है।

  एकांत में बड़ा ही सुकून महसूस करता हूं। चीजों को बारीकी से सोचने का मौका मिलता है मुझे। सबसे बड़ी बात काफी कुछ लिखने लग जाता हूं। किताबों को लेकिन सुकून से रहने नहीं देता। इतना जरुर है कि शब्दों को पढ़कर या लिखकर दिमाग में एक अलग तरह की संतुष्टि का एहसास होता है।

  मैंने कई बूढ़ों को देखा है कि वे अकेले में रहते हैं। लेकिन वे अकेला नहीं रहना चाहते क्योंकि बुढ़ापे में अपनों के पास वक्त गुजारना अच्छा लगता है। मैं अभी बूढ़ा नहीं हुआ इसलिए कह रहा हूं कि अकेले में वक्त बिताना मुझे बुरा नहीं लगता लेकिन बूढ़े लोगों से पूछा जाए तो वे कहेंगे कि वे इस वक्त अकेले नहीं रहना चाहते। वे कहेंगे कि उनकी जिंदगी के दिन ही कितने बचे हैं। इसलिए उन्हें आखिरी वक्त अपनों का प्यार चाहिए जो शायद बहुतों को नसीब नहीं हो पाता।

  डा. रमाशंकर अरुण जो हमारे क्षेत्र में जाने-माने चिकित्सक हैं, उन्होंने मुझसे कहा था कि किताबें मस्तिष्क का भोजन हैं। रमाशंकर जी की उम्र काफी है, लेकिन उनके विचार प्रभावशील हैं। वे उम्रदराज होने के बाद भी बुढ़ापे को महसूस नहीं करते और बुढ़ापे के साथ शान से जीने की कोशिश में जुटे हैं। उनके विषय में चर्चा किसी दिन ओर करुंगा ।

वैसे आजकल की जिंदगी भागदौड़ भरी ज्यादा ही होती जा रही है, इसलिए एकांत में वक्त बिताना मुश्किल हो गया है।

-Harminder Singh