यही होती है दोस्ती -2

मेरे लिए दोस्ती हमेशा एक अलग तरह का मुद्दा रहा है। कभी मैं खुद से कहता हूं कि चलो बिना मित्र के ही यह लाइफ भली है। फिर विचारों में बदलाव आता है, तब दिमाग कहता है -‘मेरा भी कोई सखा होना चाहिए।’

यह उतार-चढ़ाव भरे विचार मुझे गहराई से सोचने पर विवश कर देते हैं।

बूढ़े काका मुझे प्रेरित करते हैं कि मैं दोस्ती करुं किसी से। वैसे काका भी मेरे दोस्त की तरह ही हैं। कम उम्र इंसान की दोस्ती बड़ी उम्र के शख्स से हो, इसमें बुराई क्या है?

‘मुझे नहीं लगता कि उम्र के फासले से दोस्ती का कोई मतलब है।’ बूढ़े काका बोले।

अचानक उन्हें ‘शोले’ का वह गीत याद आ गया जिसमें धर्मेंद्र और अमिताभ गाते हैं। गाने के बोल थे :
‘ये दोस्ती, हम नहीं तोडेंगे,
तोड़ेंगे दम मगर,
तेरा साथ न छोड़ेंगे....।’

काका बोल गुनगुना रहे थे। मां बोली,‘आप बच्चों में बच्चे बन जाते हैं।’

इसपर काका ने गहरी सांस लेकर कहा,‘बेटा, हमारा जमाना गया। शुरुआत इनकी है। हम आखिरी दौर में हैं। थोड़ा हंस-खेल लें और क्या।’

मेरे कंधे पर काका ने हाथ रखा और बोले,‘तुम यदि अपनी जिंदगी में सूनापन नहीं चाहते तो मित्र बनाओ, लेकिन सोच-समझकर। मेरा मानना है कि मित्रता इंसान को इंसान से जोड़े रखने का एक शानदार साधन है जो अंतिम सांस तक भावों से बंधी रहती है, चाहें भाव अदृश्य ही सही, लेकिन एक संतुष्टि दे जाती है।’

मैं समझ गया कि इंसान का जीवन उसका अपनी नहीं, वह जुड़कर चलता है ताकि जिंदगी बोझ न लगे और यह महसूस न हो कि वह अकेला है।

सचमुच, दोस्ती यही होती है।

-Harminder Singh


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