दिल अभी भरा नहीं


‘जिंदगी कितनी खूबसूरत है। इसे छोड़कर जाने का मन नहीं करता। कितना कुछ बिखरा है यहां। समेट रहा है हर कोई। झोली भर रही है, खाली भी हो रही है। दोनों हाथ फैलाकर स्वागत किया जा रहा है नये सूरज का। कलियों की मुस्कान हमें खिलखिलाने को मजबूर कर रही है। जीने और जीने की ख्वाहिश पाले बैठे हैं हम।’ काकी ने मुस्कराते हुए कहा। उसकी आंखें बड़ी हो चुकी थीं।

‘मोह ने जीवन को नया आयाम दिया। लोग जुड़े, प्यार की बातें हुईं, खुशियां मिलीं। आनंद और आनंद की चाह में जीवन डुबो दिया बहुतों ने। यम का बुलावा आया तो मानो पहाड़ टूट पड़ा। कौन जाना चाहेगा यह सब छोड़कर? मगर जाना है। मुक्ति की बात करते हैं, पर जीवन जीने की चाह इंसान को सब कुछ भूलने को विवश कर देती है। वह कहता है -यहीं स्वर्ग है, नरक भी यहीं है। उसकी प्यास उसे ऐसा करने को कहती है। जीवन बीत जाता है। जीव प्यासा आया था, प्यासा चला जाता है।’

मैं सोच में पड़ गया कि हम भ्रम में हैं या वास्तव में संसार में हमारा जीवन जकड़ा जाता है। रिश्तों की अदृश्य डोरी कितनी गहरी तरह हमसे लिपटी है। रिश्तों का निराला खेल इंसान को बांधे रखता है। सच में हम उलझ जाते हैं।’

बूढ़ी काकी कहती है,‘इंसान सोचता है कि सुबह अभी हुई थी। दिन अभी बाकी है। सूरज अस्त होने पर उसे यकीन नहीं होता। यकायक उसके मुंह से निकलता है -‘अभी तो आया था, अभी जाना है।’ वह गंभीर हो जाता है। तब बुढ़ापे में वह जिंदगी की किताब के निराले पन्नों को यादों के सहारे उलटने में व्यस्त होता है। पूरा हिसाब-किताब उसकी आंखों के सामने होता है। दिन ढलने का वक्त आ चुका है। वह विवश है, जाना नहीं चाहता। दिल मानने को तैयार नहीं। धड़कन की गति बढ़-घट रही है।’

मैंने सोचा कि सचमुच जीवन में घुलकर इंसान प्यासा ही रह गया।

अभी-अभी तो आये थे, .........दिल अभी भरा नहीं।

-Harminder Singh