जीवन से इतना प्यार है




‘‘जीवन से इतना प्यार क्यों करते हैं। क्या इसलिए मरने से लोग डरते हैं?’’

इतना कहकर काकी अपने कंबल को शरीर पर ओढ़ने लगी। उसने कहना प्रारंभ किया,‘हम इस जीवन से इतना मोह कर बैठते हैं कि मन नहीं करता इसे छोड़ कर जाने का। मोह का खेल है सब। जिंदगी ने इंसान को कितना दिया है। लेकिन वक्त आने पर यह रुठेगी जरुर। यह मालूम होते हुए भी हम खुद को छोड़ने से डरते हैं। ये बातें इतनी उलझी हैं कि सिलवटें इनकी कहानी बयान करने में असमर्थ हैं। ऐसे सवाल हमेशा रह जाते हैं जब जिंदगी के विषय में बातें की जाती हैं। पेचीदा और पेचीदा हो जाता है।’

‘भूल कर जाते हैं हम। यह अक्सर अंत समय पता चल पाता है कि इंसान गलतियां कब कर बैठा। यह भी आखिर में एहसास होता है कि क्या पीछे छूट गया और कितना हाथ लगा। रंगीन जीवन सुन्दरता से भरा होता है। अनगिनत साधन, कोई कमी नहीं। बस यहीं रस पड़ जाता है। इसे जीवन का रस कहा जाता है। यह इतना स्वाद से भरा है कि हम इसकी मिठास में बहुत कुछ याद नहीं करते। हमें जीवन में लोग मिलते हैं। संबंध बनते हैं, भरोसे की बातें होती हैं और न जाने क्या-क्या। मोह का जन्म संबंधों के साथ शुरु होता है। जुड़ाव जीवन का हिस्सा है।’

मैंने काकी से कहा,‘मोह करना भ्रम की स्थिति पैदा तो नहीं करता।’

इसपर बूढ़ी काकी बोली,‘देखो, जब रिश्ते बने हैं, मोह जरुर उपजा होगा। इंसान के लिए यह जरुरी नहीं कि वह किस स्थिति में लोगों से जुड़ाव रखे, बल्कि वह कई बार मोह के झोंके को अचानक अपने करीब पाता है। जब दो या उससे अधिक जीवित लोग संबंधों के दायरे में जीते हैं, तो उनमें यह बात स्वत: ही घर कर जाती है कि उनका जीवन खुद के लिए तथा दूसरों के लिए कितना अनमोल है। उन्हें जीवन से मोह हो जाता है। उसे छोड़ कर जाने की इच्छा नहीं होती।’

‘कई बार ऐसा होता है कि इंसान बुढ़ापे में एकांत में अपनों का स्मरण कर कराहता है। उस समय उसका प्रेम जाग उठता है। शायद पहले से कहीं अधिक। उसे हालांकि यह पता होता है कि जो वह कर रहा है उसके मायने सांस रुकने पर खत्म हो जायेंगे। फिर भी वह प्यार करता है। शायद भ्रम में हम जीते हैं।’

-harminder singh