क्योंकि सपने हम भी देखते हैं




‘‘कुछ लोग ऐसे हैं जिनके सपने ढेरों हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो सपने नहीं देखते। उन्होंने एक अपनी अलग दुनिया बसा ली है, जिसमें सिर्फ वे ही रहते हैं। उनकी आंखें खोई हैं, शायद कुछ खो गया है कहीं। शायद कुछ तलाशती होंगी। लेकिन उनके मुस्कराने पर हंसती भी हैं उनकी आंखें। एक मामूली मुस्कराहट उनके चेहरों को रौनक कर देती है। बस इतनी छोटी है उनकी दुनिया।’’ काकी किसी सोच में पड़ गयी।

‘‘सपनों की दुनिया निराली है। अलग एहसास जो हमेशा अद्भुत और नया है।’’ मैंने काकी की आंखों में देखकर कहा।

बूढ़ी काकी बोली,‘‘हां, कुछ वैसा ही।’’

उसने आगे कहा,‘‘मेरी एक सखा हल्की-फुल्की, सरल थी। वह जितनी जल्दी खुश होती, आंखों को गीला भी उतनी तेजी से कर लेती। चुप रहती थी वह। बड़ी प्यारी थी वह, बिल्कुल गुड़िया जैसी। पढ़ती ठीक थी और व्यवहार में अपनापन झलकाती थी। पर वह सपने नहीं देखती थी। वह कहती कि उसे सपने आते ही नहीं। हमें उसपर हंसी आती। उसके चेहरे को आसानी से पढ़ा जा सकता था। सब कुछ तो लिखा था वहां। लिखावट शब्दों की तो होती ही है, लेकिन भावों की कतरनें सिमट कर माहौल को अलग अंदाज में बयां करती हैं।’’

बूढ़ी काकी ने कहा,‘‘उस सखा की दुनिया उसके आसपास सिमटी थी। वह शायद भ्रम में होगी या कुछ और, लेकिन वह खुश लगती जरुर थी, पर कहीं न कहीं टूट-फूट थी। उसका मन भी उड़ने का करता था। पंख चाहती थी वह भी। जाने क्या सोचकर रुक जाती थी। कदमों को तेजी से बढ़ाकर उसने कई बार रोका। नींद में होती नहीं थी, फिर भी नींद से जग जाती थी वह। चंचल होती कभी, खूब इठलाती। मैं सोच में पड़ जाती कि अपनी दुनिया में उसने कितने रंगों को सिमेट रखा है। शायद खुश है वह वहीं, लेकिन डर है कहीं किसी बात का। कुछ कहना चाहती है, मन में बात रह जाती है।’’

‘‘क्यों कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इतने में ही खुश हैं। क्यों कुछ लोग अपनी जिंदगी में नयापन नहीं लाना चाहते। क्यों कुछ लोग उसी जिंदगी में खुश हैं। शायद यही सोच कर कि यही बहुत कुछ है उनके लिए। यहीं सारा संसार तो बसता है, फिर क्यों फड़फड़ायें।’’

‘‘हर कोई उसे प्यार करता था, मैं भी। हम सब उसे सदा चहकता देखना चाहते। जब वह मायूस होती तो उसका चेहरा गवाह होता। वह अपने चेहरे को सिकोड़ कर अजीब बना लेती। लेकिन तब भी वह उतनी ही सुन्दर लगती। मैं पूरी कोशिश में रहती कि वह मायूसी भूल जाए। उसे हंसाने की कोशिश करती। हम दूसरों की खुशी के लिए खुद को भूल जाते हैं। हम केवल चाहते हैं कि वे खुश रहें सदा।’’

मैं सोच में पड़ गया कि कुछ लोग दूसरों से कितना प्रेम करने लगते हैं कि उनकी खुशी ढूंढ़ने के लिये खुद को भूल जाते हैं। शायद ऐसा कम लोग ही करते हैं क्योंकि इतना जुड़ाव कम ही लोग रखते हैं।

सपनों की दुनिया वे ही बसाते हैं जिनकी जिंदगी उन्हें सपने दिखाती है। जब सपने छंटते हें तो अजीब लगता है। काकी अपनी सखा को नहीं भूली क्योंकि वह उसके हृदय में बस गयी। कुछ लोग हमसे अलग दुनिया के लगते जरुर हैं, लेकिन होते नहीं। हम उन्हें हमेशा अपने पास रखने की ख्वाहिश करते हैं। उम्मीद सदा रहती है क्योंकि सपने हम भी देखते हैं।

-harminder singh