खुशी बिखेरता जीवन



खुशी जीवन का हिस्सा है। यह अहम है।’ मैंने काकी से कहा।

बूढ़ी काकी हर बात को बहुत ध्यान से सुनती है। मैं भी उसकी बातों पर उतना ही गंभीर हो जाता हूं। काकी ने कुछ पल बाद कहा,‘हमारा जीवन हंसी-खुशी को पाकर सुकून महसूस करता है। हम उन लोगों संग खुद को भूल जाते हैं जो अपनी हंसी बिखेर हमें तृप्त करते हैं। शायद जिंदगी का सबसे अनमोल उपहार है हंसी। अगर हंसी-खुशी न होती तो जीवन नीरस होता।’

‘धरती पर बसा जीवन किसी न किसी बहाने तृप्त होना चाहता है। मैं भी तृप्ती की कामना करती हूं, तुम भी। खुशी एक एहसास है, एक खूबसूरत अनुभव। यह हमारे भीतर तक प्रवेश करता है। हमारा अंग-अंग इससे प्रभावित होता है। हम खुद को ताजा पाते हैं। नयी ऊर्जा का संचार होता और जीवन में बहार आ जाती है। कलियां खिलने लगती हैं, महक से हम पुलकित हो उठते हैं। वातावरण का रंग बदल जाता है। मन का दर्द छिप जाता है।’

‘फिर तो बुढ़ापा भी खुश होता होगा?’ मैंने काकी से पूछा।

‘क्यों नहीं?’ काकी बोली।

‘बुढ़ापा भी तो इस संसार का हिस्सा है। वृद्धों के पास केवल दुखों का ही पिटारा नहीं। उनकी कमजोर आंखें भी खुशी के आंसू छलकाती हैं। वे भी खुशी का अनुभव करते हैं। हर किसी के लिए हर किसी चीज के मायने अलग-अलग हैं। जीवन को चलने का रास्ता चाहिए, खुशी को फैलने का।’

‘मेरा अपना अनुभव कहता है कि इंसान दूसरों के कार्यों में यदि सहयोग दे तो उसका जीवन सफल हो जायेगा। कष्टों का निर्धारण कर्म करते हैं और इंसान अंत समय तक कर्म करता है। सही मायने में कर्मों का फल मिलता है। हमें यह लगता है कि हम अपनी खुशी बढ़ा रहे हैं। और जब हम दूसरों की खुशी छीनकर अपने घर में सजाने की कोशिश करते हैं तब हम भविष्य की पोथी में खुद सुराख कर रहे होते हैं।’

‘जो कार्य हमें आंतरिक शांति का एहसास कराते हैं उनसे हमें कई प्रकार के अनुभव होते हैं। खुशी उनमें से एक होती है। दुखी इंसान की हालत कितनी दयनीय होती है, यह हम जानते हैं। लंबे समय के दुख के बाद इंसान सुख की अनुभूति करता है। वह उसके लिए खुशी का समय होता है। यह कोई ऐसी वस्तु नहीं तो बाजार में मिल जाए। यह केवल सद कार्यों से मिलती है या फिर जीवन के सफर में उसे अलग-अलग मौकों पर हासिल किया जा सकता है। बुढ़ापा खुद को खुश देखना चाहता है। जबकि वह शायद उतना प्रसन्न रह पाये, लेकिन उम्मीद तो लगाता ही है।’

-harminder singh